मुनिसुब्रत चालीसा

MuniSuvrat

प्रथम सुमरि अरिहंत को सिद्ध निरंजन ध्याय, आचार्यों को नमन कर बंदूँ श्री उवझाय |

सर्व साधु की वंदना जिन धर्म जिनागम नाय, चैत्य चैत्यालय वंद के चालीसा कहूँ बनाय |

तीर्थंकर मुनिसुब्रत स्वामी, हो मेरा त्रय बार नमाम |

पिता सुमित्र के तुम उजियारे, महापद्मा के नयन दुलारे |

शिखर सम्मेद से मोक्ष पधारे, ताकि महिमा को कह पाए |

राग द्वेष दर्शन से हटता समता रस हिरदय में बहता |

क्रोध कषाय समन हो जाये, चिंतत शांत चित्त हो जाये |

तुम अनंत अतिशय के धारी, कलयुग में महिमा प्रगटाई |

मध्य प्रान्त सागर मंडल में, जेठ सुदी आठें शुभ तिथि में |

कल कल करती नदी धसान, एक पटेल करे स्नान |

आया एक बुलबुला भारी, मूरत सी कुछ पड़ी दिखाई  |

लोग चार छह और बुलाये, मूरत ला बाहर पधराये |

जुड़ने लगे बरायठा वासी, और गाँव के भी आवासी |

भगवन चलो हमारे मंदिर, ऐसे भाव सभी के अन्दर |

लगे उठाने सभी जोर कर, हुई अचल बैठे सब थक कर |

आये पञ्च ग्राम जासोडा, अर्पित श्रीफल दोउ कर जोड़ा |

मूरत पांच लोग ले चाले, नहिं अचल नहिं बजन दिखाए |

विघटित होता ग्राम बचाया, छोटे का भी नाम बढाया |

नहीं किसी को छोटा समझो, ऐसा ही प्रभु कहते समझो |

प्रतिमा पर जो संवत पाया, सोला सौ चालीस बताया |

पद्मासन प्रतिमा मनहारी, तेजवंत हेम रंग वाली |

सवा तीन फुट की अवगाहना, देखे फिर न रहे कामना |

मुनिसुब्रत की महिमा भरी, कैसा योग यहाँ सुखकारी |

आठ जेठ की आठ जून की, शुक्ल पक्ष दो हज़ार तीन की |

उत्तर फाल्गुन नक्षत्र कहाया, अचल रूप फूल कर डाला |

आठ दिवस फिर सपना आया, ऐसा क्या संयोग सुहाया |

प्रतिमा ने अतिशय प्रगटाया, कुंदनलाल को सपना आया |

चाहे कितने संकट आयें, शनि ग्रह अपना तेज़ दिखाए |

संकट मोचन प्रतिमा आई, जाप करो इक्कीस दिन भाई |

प्रथम दर्श प्रतिमा का करना, रविवार दिन माला जपना |

शनि अमावस को भी महिमा, विघन मिटे पावें सब गरिमा |

आते लोग विनती करते, दुखियों का दुःख पल में हरते |

कई लोग आ पुण्य कमाते, कई कई के संकट काटे |

मिथ्यात्वी बनने से बचते, मुनिसुब्रत जिन पूजा करते |

प्रतिवर्ष निर्वाण पर मेला, काटे दर्श कर्म का रेला |

नहिं विश्वास तो आकर देखो, हाथ कंगन क्यों आरसी देखो |

हम तो उलझे पाप पंक में, श्रद्धा के बिन बना अंध मैं |

मिथ्यात्वी का पोषण हरलो, कल्पना में सद् बुद्धि भर दो |

मुनिसुब्रत भगवान को चालीसा में नाय, कर्म दुःख संकट टले मिथ्या दोष पलाय |

सुख सम्पति नित ही बढे दोज मयंक समान, आठ महाव्रत पाल के पावे पद निर्वाण |

Written by: Smt. Kalpana Jain

Asst Teacher, Sagar(MP)

Deepawali

diwali

कार्तिक कृष्ण (१५) अमावस्या : वीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव (दिवाली महोत्सव)

दीपावली हम सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है, इसी दिन हम सभी के इष्ट २४ वे तीर्थंकर भगवान् महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था |
कार्तिक कृष्ण की १४ की रात व कार्तिक कृष्ण की अमावस्या की प्रातः वेला में भगवान् महावीर ने बाकी बचे हुए ४ अघातिया कर्मों को नष्ट कर के मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त किया और इसी दिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या की सायं काल की शुभ वेला में भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गौतम स्वामी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ |

ततस्तुः लोकः प्रतिवर्षमादरत् प्रसिद्धदीपलिकयात्र भारते |
समुद्यतः पूजयितुं जिनेश्वरं जिनेन्द्र-निर्वाण विभूति-भक्तिभाक् |२० |

translation :The gods illuminated Pava-nagri by lamps to mark the occasion. Since that time, the people of Bharat celebrate the famous festival of “Dipalika” to worship the Jinendra (i.e. Lord Mahavira) on the occasion of his nirvana.
अनुवाद: इस दिवस को हर्षोल्लास से मानाने के लिए देवों द्वारा दीपमालिकाएं प्रज्वलित की गयीं, जिसको देख कर के भारत वासी भगवान् जिनेन्द्र (महावीर) के निर्वाण उत्सव को दिवाली के रूप में मानाने लगे |

शुभ दिवाली, happy diwali

Sharad Purnima

धन्य घडी यह “शरद पूर्णिमा”, मिला हमें जिसका वरदान |
संत शिरोमणि और ज्ञान से, पूर्ण हुई ये सदी महान ||

शरद पूर्णिमा – अश्विन शुक्ल १५, वी. नि. सं. २५४०:

आज का दिवस एक ऐसी महान तिथि को है, जो हमें महान पुन्यवान सिद्ध करता है, हमें ही क्योँ सारे भ्रम्हांड को पुण्यवान और अतिशय युक्त बनता है | क्यूंकि आज इस पवन तिथि को इस सदी के महानतम दिगम्बर आचार्य संत शिरोमणि १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज और गणिनी आर्यिका १०५ ज्ञानमती माताजी का जन्मोत्सव है | धन्य है हम जो इस सदी मैं मनुष्य हुए और इनकी मधुर वाणी सुन के भाव सागर से पार होने मोक्ष मार्ग पर चल उठे |

आचार्य श्री विदिशा (म. प्र.) में विराजमान हैं |
आर्यिका माता ज्ञानमती जी जम्बुद्वीप, हस्तिनापुर में विराजमान हैं |

आचार्य श्री सा और कोई चिन्तक कभी नही हो सकता,
मूक पशुओं की पुकार को सुनने वाला नही हो सकता,
धन्य है हम जो हमें मिले इस जीवन में आचार्य श्री,
मक्षा मार्ग का आर्य प्रदर्शक इन जैसा कोई नही हो सकता |

जय जय गुरुदेव

ज्ञानमती माता ने जैसा ज्ञान दिया है हम सबको,
कठिन ग्रंथों को सरल रूप में पढ़ा दिया है हम सबको,
बता दिया है इस जग को नारी शक्ति क्या कर सकती
स्वयं सरस्वती बन कर के अभिमान दिया है हम सबको |

written by: श्रेय कुमार जैन